सोमवार, 31 दिसंबर 2012

नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है


हो रहा पुराना वर्ष विदा,
नव वर्ष खुशी लेकर आये.
कुछ ऐसा करना है हमको,
सारे जग में खुशियाँ छाये.

न भेद भाव मनों में हो,
सब ओर प्रेम बरसायें हम.
भूखा सोए न कोई बच्चा
थोड़ा सा उनमें बाँटें हम.

शिक्षा पर सब का हक हो,
बचपन न पिसे मशीनों में.
हैं करें कामना सभी आज,
खुशियाँ हों उनके जीवन में.

नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है,
सब और नयी खुशियाँ लाना.
ऐसा न करें हम कार्य कोई,
जिससे न पड़े फिर शर्माना.

कैलाश शर्मा 

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

सेंटा क्लॉज़ का इंतज़ार है

जब क्रिसमस त्यौहार है आता, 
खुशियाँ छा जाती हैं मन में.
जगमग करता है घर सारा,
क्रिसमस ट्री सजता आँगन में.

तरह तरह के केक हैं बनते,
जिनको मिलजुल कर खाते.
रौनक रहती है घर बाहर,
मिलकर सब त्यौहार मनाते.

सेंटा क्लॉज़ का इंतज़ार है,
वे सब को उपहार हैं लाते.
मन चाहे उपहार हैं पाकर,
सब बच्चे हैं ख़ुशी मनाते.

अपनी खुशियाँ उनसे भी बाँटें,
जो गरीब असहाय हैं जग में.
जब होंगी हर चेहरे पर खुशियाँ,
तब क्रिसमस आयेगी जग में.

MERRY CHRISTMAS

कैलाश शर्मा 

रविवार, 9 दिसंबर 2012

बचपन को बचपन रहने दो

मत छीनो बच्चों का बचपन,
बचपन को बचपन रहने दो.
मत बोझ बढ़ाओ बस्तों का,
बच्चों का बचपन रहने दो.

बढ़ गया है बोझ किताबों का,
भागे पीछे न तितली के.
पेड़ों पर कभी न झूला झूले,
न चखे स्वाद हैं इमली के.

हो गए प्रकृति से दूर बहुत,
कार्टून जगत में रहें मस्त.
अनजान हैं छुपा छुपाई से, 
विडियो गेमों में रहें मस्त.

अनजान हैं उगते सूरज से,
हैं नहीं चांदनी में खेले.
होम वर्क मिलता इतना,
अनजान हैं क्या होते मेले.

नंबर वन बनना है अच्छा,
पर इसे दवाब न बनने दो.
बचपन है एक बार मिलता,
बचपन को बचपन रहने दो.


© कैलाश शर्मा 

बुधवार, 28 नवंबर 2012

तीन मछलियाँ (काव्य-कथा)


एक सरोवर था जंगल में,
उसमें तीन मछलियाँ रहतीं.
था स्वभाव अलग तीनों का,
लेकिन थी मिलकर के रहतीं.

बुद्धिमान थी पहली मछली,
दूजी मछली मगर चतुर थी.
मगर तीसरी मछली जो थी
बुद्धि से कमजोर बहुत थी.

बुद्धिमान मछली थी हर पल
चारों और नजर रखती थी.
कहाँ क्या हो रहा जंगल में
इसकी उसे खबर रहती थी.

दो मछुआरों की कुछ बातें
एक दिन उसके कान में आयीं.
कल डालेंगे जाल यहाँ पर
बहुत मछलियाँ नजर हैं आयीं.

बुद्धिमान मछली ने जाकर
दोनों मित्रों को बात बताई.
नहर जुडी तालाब से जो है
उससे भाग चलें हम भाई.

दोनों मछली हुई न राजी,
वही अकेली गयी नहर में.
अगले दिन दोनों ही मछली
मछुआरे के फंसी जाल में.

मछुआरों ने सभी मछलियाँ
खींच जाल डालीं जमीन पर.
मछली चतुर हिले डुले बिन
पडी रही चुपचाप जमीं पर.

उसे मरा समझ मछुआरे
लगे छांटने बाकी मछली को.
उछल कूद पहुँची पानी में
मछली चतुर देख मौके को.

बुद्धू मछली परेशान हो
उलटी सीधी पलट रही थी.
मछुआरों ने जब ये देखा
मार उसे शान्त कर दी थी.

बुद्दिमान मछली कुछ दिन में
फिर वापिस तालाब में आयी.
मछली चतुर हुई खुश मिलकर,
उसने उसको सब बात बताई.

बुद्धि का उपयोग न करता,
उचित सलाह जो नहीं मानता.
अपनी हानि स्वयं वह करता
और है फिर पछताना पड़ता.

कैलाश शर्मा 

सोमवार, 12 नवंबर 2012

आओ सब एक दीप जलायें

                    **दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं** 

आओ सब एक दीप जलायें,
मिलजुल कर त्यौहार मनायें.
भेद भाव के अंधियारे को 
मिलकर के हम आज भगायें.

किसी भी घर न हो अंधियारा,
एक दीप हर द्वार जलायें.
एक एक टुकड़ा मिठाई का
मिल कर साथ सभी के खायें.

फुलझडियां, अनार, पटाखे,
मिल कर के हम साथ चलायें.
लेकिन इतना ध्यान रखें हम 
पर्यावरण न दूषित हो जायें.

हर त्यौहार खुशी लाता है,
प्रेम प्रीत से सभी मनायें.
धर्म जाति का भेद भुलाके,
आओ सबको गले लगायें.

कैलाश शर्मा  

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

किसान और सांप (काव्य-कथा)

अपने बंज़र खेत देख कर 
एक किसान दुखी होता था.
पूरी मेहनत करने पर भी, 
कुछ भी न पैदा होता था.

अपने खेत में उस किसान ने 
एक दिन सांप की बांबी देखी.
नागराज को यदि खुश कर दूं,
शायद किस्मत जग जायेगी.

एक कटोरा दूध से भर कर
उसने वहां रखा रात को.
एक स्वर्ण मुद्रा थी देखी 
लेने गया सुबह जब उसको.

रोज कटोरा दूध का रखता 
सुबह स्वर्ण मुद्रा वह पाता.
हुई गरीबी दूर थी उसकी 
छूट गया दुर्दिन से नाता.

एक बार वह गया शहर को
एक ज़रूरी काम को करने.
अपने बेटे से कह कर के 
एक कटोरा दूध का रखने.

रख कर लडका दूध कटोरा,
लेने सुबह जो पहुँचा उसको.
देख स्वर्ण मुद्रा बरतन में 
बहुत आश्चर्य हुआ था उसको.

बहुत स्वर्ण मुद्रा होंगी बांबी में,
लालच उसके मन में आया.
कैसे एक साथ पाऊं उन सब को,
यह विचार था मन में आया. 

दूध कटोरे को लेकर के
गया दूसरे दिन बांबी पर.
करने लगा इंतज़ार सांप का 
छुपकर के थोड़ी दूरी पर.

जैसे नाग निकल कर आया,
उस पर वार किया लाठी से. 
नाग राज ने क्रोधित हो कर 
काट लिया लडके को फन से.

घायल सांप गया बांबी में,
जान गयी लडके की विष से.
क्रियाकर्म मृत लडके का 
किया गांव वालों ने मिल के.

जब किसान गांव को लौटा
हुआ बहुत दुखी बात जानकर.
लेकर के वह दूध कटोरा 
पहुंचा नाग राज की बांबी पर.

हाथ जोड़ कर करी प्रार्थना 
मेरे बच्चे को माफ़ है करदो.
नाग राज फ़िर उससे बोले 
समझो भाग्य खेल है इसको.

दोष न लडके का या मेरा,
लालच बना मृत्यु का कारण.
मेरे विष से उसका मरना,
भाग्य में बस बनना था कारण. 

भाग्य लिखा है मिटा न पाते,
जो होना है वह होकर रहता.
हिम्मत रखो ह्रदय में अपने 
नहीं भाग्य पर है बस चलता.

कैलाश शर्मा 

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

धोबी का गधा (काव्य-कथा)

एक धोबी के पास गधा था,
कपडे लेकर घाट पर जाता.
लेकिन गरीब होने के कारण,
भर पेट न खाना वह दे पाता.

भूख और कमजोरी कारण,
गिरा राह में घाट से आते.
बहुत दुखी होकर के धोबी,
घर को चला पोटली उठाके.

चलते हुए राह में उसने 
एक शेर को सोते देखा.
डर से लगा कांपने धोबी
न बचने का रस्ता देखा.

खड़ा रहा वह डर के मारे,
कोई न हरकत करी शेर ने.
थोड़ी देर में हिम्मत करके
आगे बढ़ा वह शेर देखने.

सांस नहीं चल रही शेर की,
डरते डरते उसे छुआ था.
हिला नहीं शेर बिल्कुल भी
वह तो कब का मरा हुआ था.

था शैतान दिमाग से धोबी,
एक उपाय दिमाग में आया.
भूखा नहीं अब गधा मरेगा,
शेर खाल गर उसको पहनाया.

चाकू लेकर बढ़ा वो आगे,
उसने उसकी खाल निकाली.
शेर खाल को फ़िर धोबी ने
अपने गधे के ऊपर डाली.

छोड़ दिया फ़िर गधे को उसने
एक खेत में लेजाकर के. 
पहली बार गधे ने खायी
फसल खेत में जी भर कर के.

हर रोज रात गधे को धोबी
शेर खाल की पहना देता.
और फसल खाने को उसको
किसी खेत में छोड़ था देता.

सभी किसान दुखी होते थे 
खेतों को बरबाद देख कर.
डर से कुछ न कर पाते थे,
अपने खेतों में शेर देख कर.

पूनम की चांदनी रात में,  
गधा चर रहा था खेत में.
दूर कहीं से एक गधी का 
ढेंचू ढेंचू स्वर पड़ा कान में.

रोक न पाया गधा स्वयं को 
ढेंचू ढेंचू कर लगा रेंकने.
सुनकर के आवाज गधे की 
छुपे किसान आगये घेरने.

डंडों से की खूब पिटाई,
गधा गिर गया फ़िर जमीन पर.
इतनी हुई पिटाई उसकी
निकल गयी थी जान वहीं पर.

सुबह वहाँ जब धोबी आया,
उसने मरा गधे को पाया.
दुखी हुआ यह देख के धोबी
अपनी करनी पर पछताया.

अगर दूसरे की वस्तु को 
धोखे से उपयोग करोगे.
अंत हमेशा बुरा ही होगा,
अपनी वस्तु भी खोओगे.

कैलाश शर्मा 

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

गधे का गाना (काव्य-कथा)

एक गधा और एक लोमड़ी 
उनमें बहुत दोस्ती गहरी.
रोज़ रात को दोनों थे जाते 
एक खेत में खाने ककड़ी.

चलता रहा बहुत दिन ऐसे 
रात्रि पूर्णिमा की फिर आयी.
पूर्ण चन्द्रमा चमक रहा था 
और सफ़ेद चांदनी थी छायी.

देख चाँद की मस्त चांदनी
बोला गधा मुझे है गाना.
तुम्हें लोमड़ी सुनना होगा 
मेरा सुन्दर मीठा गाना.

बहुत लोमड़ी ने समझाया 
गाने की गलती न करना.
खेत का मालिक आजायेगा 
हम को पड़ जाएगा पिटना.

बहुत मना किया लोमड़ी ने 
लेकिन गधे ने एक न मानी.
चलते हुए लोमड़ी बोली 
मैं बाहर करती हूँ निगरानी.

शुरू किया रेंकना जैसे ही,
डंडा लेकर मालिक आया.
करी धुनाई गधे की उसने,
नहीं वहां से भाग वो पाया.

चला गया खेत का मालिक 
उसे अधमरा वहाँ छोड़कर.
पहुंचा पास लोमड़ी के वह 
धीरे धीरे चलता लंगड़ाकर.

जब देखा लोमड़ी ने उसको
कहा न तुमने बात थी मानी.
अपनी मर्ज़ी का करने से 
तुमको मार पडी है खानी.

अगर मित्र की सही राय को
ज़िद के कारण नहीं मानता.
कष्ट उठाना पडता उसको
आखिर में पछताना पडता.

कैलाश शर्मा 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

नीला सियार (काव्य-कथा)

एक सियार भूल कर रस्ता
गलती से आ गया शहर में.
देख शहर की भीड़ भाड़ को
डर जागा था उसके मन में.

नज़र पडी जब कुत्तों की,  
उसके ऊपर लगे भोंकने.
डर कर के जब वह भागा,
उसके पीछे लगे दौडने. 

थका सियार भाग भाग कर,
कुत्ते पीछे सियार था आगे.
तभी दिखाई दिया उसे था 
बड़ा हौद एक घर के आगे.

कूदा सियार था उसी हौद में
कुत्ते उस तक पहुँच न पाये.
थोड़ी देर भौंक कर उस पर, 
लौट गये जिस रस्ते थे आये.

नीला रंग था भरा हौद में,
निकल सियार हौद से आया.
बाल धूप में सूख गये जब,
सारा शरीर था नीला पाया.

नीला अपना रंग देख कर
चालाक सियार बहुत हर्षाया.
चालाकी स्वभाव में उसके 
एक विचार था मन में आया. 

जंगल में सियार जब पहुंचा
सभी जानवर चोंक गये थे.
ऐसा जानवर कभी न देखा 
मन में यह सब सोच रहे थे.

जाकर वह सभी से बोला,
ईश्वर ने भेजा है मुझको.
मैं अब हूँ राजा जंगल का 
जैसा कहूँ है करना तुमको.

ईश्वर का आदेश समझ कर
सबने सियार को राजा माना.
बड़े मज़े कट रही ज़िंदगी 
मिलता भरपेट रोज था खाना.

देख चाँद एक दिन सियार थे,
हुआ हुआ सब लगे थे करने.
नीला सियार मन रोक न पाया 
हुआ हुआ वह लगा था करने.

चोंक गये तब सभी जानवर 
नीले सियार की पोल खुल गयी.
झपट पड़े सब उसके ऊपर 
पल भर में ही मृत्यु हो गयी.

धोखे का फल कुछ दिन मीठा,
जिस दिन सत्य सामने आता.
जो कुछ मिलता है धोखे से, 
नष्ट वो पल भर में हो जाता.

कैलाश शर्मा 

बुधवार, 29 अगस्त 2012

तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011

लखनऊ में २७ अगस्त, २०१२ को आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन' में मुझे 'वर्ष के श्रेष्ठ बाल रचनाओं के लेखक' के रूप में 'तस्लीम  परिकल्पना सम्मान-२०११' से नवाजा गया. 

परिकल्पना समूह और सभी मित्रों के स्नेह, प्रोत्साहन और शुभकामनाओं के लिये हार्दिक आभार.

कैलाश शर्मा 

शनिवार, 11 अगस्त 2012

मगरमच्छ और बन्दर (काव्य-कथा)

नदी किनारे एक टापू पर
रहता एक अकेला बन्दर.
मीठे फल से पेड़ लदे थे,
साथी था न कोई वहाँ पर.

मगरमच्छ तट पर था आया,
उसे देखकर बन्दर हर्षाया.
दिन भर बात रहे वे करते,
मीठे फल खा मज़ा था आया.

गहरे दोस्त बन गये दोनों,
रोज़ रोज़ तट पर मिलते थे..
दुनियां भर की बातें करते,
मीठे मीठे फल चखते थे.

कुछ फल दिए मगर को एक दिन
जा कर भाभी को उन्हें खिलाना. 
कैसा स्वाद लगा इन फल का,
कल कल आकर के हमें बताना.

मीठे लगे थे फल पत्नी को,
रोज़ मगर घर को ले जाता.
बढने लगा मगर बन्दर में
प्रतिदिन और प्रेम का नाता.

मगरमच्छ पत्नी ने सोचा, 
बन्दर कितने मीठे फल खाता.
मांस भी उसका मीठा होगा
खाने को यदि वह मिल जाता.

मगरमच्छ से एक दिन बोली
मैं बीमार, न बच पाऊँगी.
अगर कलेजा बन्दर का खाऊँ
शायद ठीक मैं हो जाऊँगी.

मुझे कलेजा खाना बन्दर का
मगरमच्छ पत्नी ने ज़िद ठानी.
समझाया था बहुत मगर ने,
लेकिन उसने थी एक न मानी.

दिल में बहुत दुखी होकर के
मगरमच्छ टापू पर आया.
बन्दर से बोला वह हंस कर,
भाभी ने घर तुम्हें बुलाया.

मगरमच्छ की पीठ बैठ कर
बन्दर चला मगर के घर पर.
नदी बीच में जब वह पहुंचा
मगरमच्छ ने कहा मित्रवर.

पत्नी ने खाने को कलेजा, 
दावत कह बुलवाया तुमको.
नहीं कोई दावत है घर पर ,
धोखा देने का दुःख मुझको.

बन्दर समझ गया चालाकी
लेकिन हंस कर के वह बोला.
मेरा कलेजा तो रखा पेड़ पर
क्यों चलने से पहले न बोला.

कुछ भी कर सकता हूँ मित्र को
वापिस मुझको तट पर ले जाओ.
ले कर कलेजा आता हूँ वापिस,
भाभी को देकर स्वस्थ कराओ.

मगरमच्छ वापिस तट आया,
कूद पेड़ पर पहुंचा बन्दर.
बोला बिलकुल मूर्ख हो तुम तो
रखता कलेजा कौन पेड़ पर.

तुमने धोखा दिया मित्र को,
हुई खत्म मित्रता हमारी.
हो कर दुखी मगर था लौटा
पछताता गलती पर भारी.

नहीं मित्र को धोखा देना 
वर्ना सदा ही पछताओगे.
टूटेगा विश्वास सदा को 
और मित्र भी खो जाओगे.

कैलाश शर्मा 

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

विहान के जन्मदिन पर


       विहान के प्रथम जन्म दिन पर नाना और नानी का 
                           ढेरों प्यार और आशीर्वाद 


                                         दिवस आज को विहान तुम 
                                         हम सब की गोदी में आये.
                                         देख तुम्हारी भोली सूरत,
                                         हम सब के थे मन हर्षाये.


                                         अभ्युदय को भाई मिला था,
                                         हम सब को एक और खिलोना.
                                         आज तुम्हारी किलकारी से
                                         गूँज रहा घर का हर कोना.

                                         प्यार बढे दोनों भाई का,
                                         मम्मी डैडी की दो आँखें.
                                         सेतु दिलों के बीच बनें,
                                         तेरी आगे बढती दो बाँहें.


                                         फूल बिछें राहों में तेरी,
                                         जीवन में हर खुशियाँ आयें.
                                         बनी रहे बचपन की शुचिता,
                                         बार बार दिन ये फ़िर आयें.


                                         कैलाश शर्मा 

सोमवार, 18 जून 2012

वर्षा रानी जल्दी आओ

बहुत सताया है गर्मी ने
वर्षा रानी जल्दी आओ.


ताप रहा सूरज सुबह से,
बेचारी धरती है जलती.
पशु पक्षी बेचैन धूप में,
अब तो वर्षा लेकर आओ.


पौधे सूख रहे बगिया में,
पानी क्यारी में कुछ डालें.
पानी में कुछ देर खेलते,
तुम काले बादल ले आओ.


छुट्टी बीत रही हैं सारी,
घर में ही हैं कैद हो गये.
दया करो अब बच्चों पर,
वर्षा रानी आ भी जाओ.


नाचेंगे मयूर स्वागत में,
बाग बगीचे हर्षायेंगे.
खेलेंगे बारिस में हम सब,
इंतज़ार न और कराओ.



बहुत सताया है गर्मी ने
वर्षा रानी जल्दी आओ.


कैलाश शर्मा 



मंगलवार, 5 जून 2012

आओ पर्यावरण बचायें

(विश्व पर्यावरण दिवस पर)


आओ पर्यावरण बचायें,
धरती माँ का क़र्ज़ चुकायें.


सब कुछ पाया धरती माँ से,
बदले में क्या दिया है हमने?
कुदरत की सौगात के बदले,
दूषित आँचल किया है हमने.


नदियों के निर्मल पानी में
बहा गन्दगी अपनी हमने.
गंगा यमुना को दूषित कर
दिया विनाश निमंत्रण हमने.


जंगल काट रहे हैं सारे,
बाँध बनाते हैं नदियों पर.
आसमान छूती इमारतें
बोझ बढाती हैं धरती पर.


अब भी समय, सुधारो गलती,
समय हाथ से निकल न जाये.
करो विकास, मगर यह सोचो,
कर्म तुम्हारा, न धरा मिटाये.


कैलाश शर्मा 

रविवार, 20 मई 2012

सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त मिले मुश्किल से,
कभी व्यर्थ न झगड़ा करना.
मिलजुल कर के साथ खेलना,
कभी न अपना तेरा करना.

धनी, गरीब, धर्म का अंतर,
कभी न तुम दीवार बनाना.
हो गरीब गर मित्र तुम्हारा,
उसे न यह अहसास दिलाना.

था गरीब सुदामा कितना,
मगर कृष्ण को सबसे प्यारा.
सदा साथ देकर के उसका,
रचा एक इतिहास था न्यारा.

मतलब से जो करे दोस्ती,
दोस्त न वो पक्का होता है.
जिसमें कोई स्वार्थ नहीं हो,
दोस्त वही सच्चा होता है.

कैलाश शर्मा 

मंगलवार, 8 मई 2012

अंगूर खट्टे हैं (काव्य-कथा)

एक लोमड़ी भूखी प्यासी,
घूम रही थी इधर उधर.
बाग एक अंगूरों का था 
आया उसको तभी नज़र.

पके, घने अंगूर थे  ऊंचे,
देख उन्हें था मन ललचाया.
अपने पैरों पर वह उछली,
पंजा उन तक पहुँच न पाया.

बार बार की उछल कूद से
भूख प्यास थी और बढ गयी.
पहुँच न पायी अंगूरों तक,
थक कर उसकी आस गुम गयी.

खट्टे अंगूरों की खातिर,
समय व्यर्थ में यहां गंवाया.
अंगूरों को खट्टा कह कर,
था निराश मन को समझाया.

काम अगर ताकत से बाहर,
नहीं काम में दोष निकालो.
दोष दूसरों को देने से पहले,
बेहतर अपनी सीमा पहचानो.

कैलाश शर्मा 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

आओ सब मिल पेड़ लगायें

आओ सब मिल पेड़ लगायें,
  पौधा एक एक अपनायें.

घर में या बगिया में बाहर,
जहां जगह एक पौध लगायें.
ध्यान रखें पानी देने का,
और खाद भी कभी मिलायें.

मम्मा रखती ध्यान तुम्हारा,
ध्यान रखो पौधे का वैसे.
जैसे तुम हंसते हो हर पल,
मुस्काएगा पौधा भी वैसे.

साथ बढ़ोगे तुम दोनों ही,
एक अपनापन जुड़ जायेगा.
बचपन का ये साथ तुम्हारा,
जीवन भर खुशियाँ लायेगा.

एक एक पेड़ मिल कर के, 
जग में हरियाली लायेंगे.
यह धरा हमारी हर्षायेगी,
उसको नव जीवन लायेंगे.

कैलाश शर्मा 

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बगुला और केकड़ा (काव्य - कथा)


एक तालाब किनारे बगुला
गुमसुम बनकर खड़ा हुआ था.
कैसे पाऊँ मछली मैं सारी,
मन ही मन यह सोच रहा था.

एक केकड़ा और मछलियाँ
उस तलाब के अन्दर रहते.
रहता भरा सदां पानी से,
उसमें बड़े मजे से रहते.

गुमसुम खड़ा देख बगुले को
मछली ने था कारण पूछा.
बगुला बोला मैं हूँ ज्योतिषी,
पड़ने वाला है जल्द ही सूखा.

सुन भविष्यवाणी बगुले की,
चिंता में पड़ गयीं मछलियाँ.
बहुत केकड़े ने समझाया,
लेकिन समझी नहीं मछलियाँ.

बगुले से उनने विनती की,
उसने एक उपाय बताया.
साथ एक मछली को लेकर,
एक नया तालाब दिखाया.

वापिस आकर के मछली ने
उस तलाब की करी बढ़ाई.
जायेंगी हम सभी वहां पर 
सबने मिलक र राय बनाई.

लेकर मछली एक चोंच में,
नए तलाब में चला छोड़ने.
गया नहीं तलाब को लेकिन
पकड़ी राह दूसरी उसने.

एक पेड़ के नीचे जाकर
खाया उसने उस मछली को.
आखिर में जो बचीं हड्डियां,
वहीं फेंक दी उसने उनको.

धीरे धीरे सभी मछलियाँ
गयीं पेट बगुले के अन्दर.
बगुले ने केकड़े से पूछा
तुम को भी ले चलूँ वहां पर. 


साइज में था बड़ा केकड़ा,
नहीं चोंच में वह आ पाया.
बगुले ने तरकीब निकाली, 
अपनी गर्दन में लटकाया.

बगुला लेकर उड़ा गगन में,
पहुंचा जब वह पास पेड़ के.
शक जागा केकड़े के मन में,
पड़ी हड्डियां वहां देख के.

अपने ताकतवर पंजों से
बगुले का था गला दबाया.
जान गंवाई उस बगुले ने,
फल धोखा देने का पाया.

जैसा बोओगे बीज जमीं में,
वैसा ही तुम फल पाओगे.
बुरे काम का बुरा नतीजा
आज नहीं तो कल पाओगे.

कैलाश शर्मा 

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

शेर और लकड़हारा (काव्य-कथा)

जब भी शेर शिकार को जाता,
साथ सियार, कौआ भी जाते.
जो भी बचता था शिकार से,
वे दोनों मिलजुल कर खाते.


एक लकड़हारा जाता था जंगल,
शेर अकेला, आया पीछे से.
देख लकड़हारा घबराया,
करने लगा बात हिम्मत से.


बात लकड़हारे की रुचिकर थीं,
सुन कर मज़ा उसे था आया.
चखा लकड़हारे का खाना,
स्वाद शेर के मन को भाया.


उसके साथी साथ नहीं थे,
उस दिन शेर अकेला ही था.
सादा भोज लकड़हारे का 
भुला गया खाना शिकार का.


छोड़ दिया जाना शिकार पर 
खाता साथ लकड़हारे के.
उसके न शिकार जाने से 
कौआ सियार रहते थे भूखे.


छुप कर किया शेर का पीछा,
देखा उसे रोटियाँ खाते.
चलता रहा अगर ऐसा ही,
पड़ जायेंगे खाने के लाले.


साथ शेर लकड़हारे का
कैसे टूटे प्लान बनाये.
विनती करी शेर से उन ने
उन्हें दोस्त से भी मिलवाये.


होकर राजी, साथ उन्हें ले 
चला लकड़हारे से मिलने.
देखा उन्हें दूर से आते,
लगा तुरत पेड़ पर चढ़ने.


बहुत कहा लकड़हारे से,
मगर नहीं वह नीचे आया.
खोकर एक मित्र सच्चे को,
शेर बहुत मन में पछताया.


अपने किसी दोस्त की बातें
अन्य किसी को नहीं बताना.
है आसान दोस्ती करना,
लेकिन मुश्किल उसे निभाना.


कैलाश शर्मा 

गुरुवार, 29 मार्च 2012

बन्दर बाँट (काव्य कथा)

दो बिल्ली एक राह जा रहीं 
नजर आयी उनको एक रोटी.
आपस में वे लगीं थी लड़ने,
पहले  देखी मैंने  यह रोटी.


कोई फैसला हुआ न उनमें,
उसी समय एक बन्दर आया.
झगड़े का कारण सुन कर के,
उसने एक उपाय  सुझाया.


लड़ने से न कोई फ़ायदा,
बाँट बराबर खा लो रोटी.
मैं आधी आधी कर दूँगा,
तोल तराजू पर यह रोटी.


कर के दो टुकड़े रोटी के
एक एक पलड़े में रक्खा.
जो टुकड़ा थोडा था भारी,
तोड़ के उससे मुंह में रक्खा.


कभी एक और कभी दूसरा,
टुकड़ा रोटी का भारी होता.
उससे एक तोड़ता टुकड़ा,
वह उसके मुंह अन्दर होता.


देख बचा छोटा सा टुकड़ा,
बिल्ली समझ गयीं चालाकी.
बंटवारा न हमें चाहिए,
वापिस कर दो  रोटी बाकी. 


एक बराबर हों दो टुकड़े,
बंदर बोला मैंने कोशिश की.
अब जो टुकड़ा बचा हुआ है,
वह कीमत मेरी मेहनत की.


होता परिणाम सदां ऐसा ही,
जब झगड़े न खुद सुलझाते.
दो जन का जब भी झगड़ा हो 
सदां तीसरे लाभ उठाते.


कैलाश शर्मा 


शुक्रवार, 16 मार्च 2012

बुद्धिमान बकरियां (काव्य कथा)

एक नदी पर पुल था सकरा,
एक बार में एक जा पाता.
एक तरफ से कोई जब आता,
दूजा उसी छोर रुक जाता.


दो मूरख, जिद्दी थीं बकरी,
पुल पर दो छोरों से आयीं.
पुल के बीचों बीच पहुँच कर,
पीछे हटने पर हुई लड़ाई.


वे न पीछे हटने को राजी,
दोनों आगे बढ़ती आयीं.
लड़ते लड़ते गिरी नदी में,
उन दोनों ने जान गंवाई.


एक बार बुद्धिमान दो बकरी,
पहुँची साथ बीच उस पुल के.
कैसे यह पार करें हम दोनों,
युक्ति निकाली मिलजुल के.


झुक कर बैठ गयी एक बकरी,
दूजी ऊपर से पार कर गयी.
दोनों पहुंच गयी मंजिल पर,
बुद्धि से एक राह बन गयी.


कोई समस्या जब भी आये,
झगड़े से वह नहीं सुलझती.
बुद्धि का उपयोग करो जब,
हर मुश्किल की राह निकलती.


कैलाश शर्मा 

सोमवार, 5 मार्च 2012

अभ्युदय के जन्मदिन पर

             अभ्युदय के जन्म दिन पर नाना और नानी का 
                              ढेरों प्यार और आशीर्वाद 

                                           हर वर्ष खुशी के हों मेले,
                                           हर दिन खुशियाँ लेकर आये.
                                           गंगा सी तुम शुचिता पाओ,
                                           सूरज प्रकाश लेकर आये.


                                           जब से तुम आँगन में आये,
                                           हर कोना  गुलज़ार हो गया.
                                           बीत गया पतझड़ का मौसम,
                                           फिर वसंत का राज हो गया.


                                           अपना बचपन पाया तुझमें,
                                           फिर जीने की चाह जग गयी.
                                           खोया था जीवन में जो कुछ,
                                           उस सब की है याद गुम गयी.


                                           शत शत बार जन्मदिन आये,
                                           सपने हों  पूरे जीवन के.
                                           मम्मा पापा की बगिया में
                                           रहो सदां फूल से खिल के.

                                                                     कैलाश शर्मा 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

चंदा मामा

मामा बनते हो तुम चंदा
मेरे घर पर कभी न आते.
तारों साथ रात भर रहते
पर बच्चों के पास न आते.


घटते बढ़ते रोज रोज क्यों,
पूरे तुम अच्छे लगते हो.
इसका राज बताओ हमको,
क्या तुम दूध नहीं पीते हो?


कभी चांदनी लेकर आते,
कभी अँधेरे में क्यों रहते?
सारी रात जागते हो तुम,
दिन में किसके घर में रहते?


नानी रहती साथ तुम्हारे
हर पल रहती सूत कातती.
मेरी नानी तो दूर बहुत है
बहुत दिनों में मिलने आती.


आओ कभी हमारे घर पर
हमें कहानी खूब सुनाओ.
खीर बनायेगी माँ मेरी,
आओ बड़े स्वाद से खाओ.


कैलाश शर्मा 

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

लोमड़ी और सारस (काव्य-कथा)

गहरे दोस्त लोमड़ी सारस,
रहते थे एक नदी किनारे.
कहा लोमड़ी ने सारस से,
खाने पर घर आओ हमारे.

सूट, बूट और टाई पहन कर,
सारस घर से निकला सजकर.
भूख जग गयी थी सारस की,
पहुंचा जब वो उसके घर पर.

खीर लोमड़ी लेकर आयी
एक बड़ी चौड़ी थाली में.
खीर न उसके मुंह में आती
चोंच ड़ालता जब थाली में.

भूखा सारस जब घर आया
गुस्से से वह उबल रहा था.
कैसे सबक सिखाऊँ उसको
सोच सोच वह बिखर रहा था.

कहा लोमड़ी तुम घर आना,
उसने मीठी खीर बनायी.
सारस घर जब आयी लोमड़ी,
खीर भरी थी रखी सुराही.

कोशिश बहुत लोमड़ी ने की
नहीं खीर तक वह जा पायी.
भूखी लौट चली वह घर को,
मन ही मन थी वह खिसयाई.

करो दोस्त से गर चालाकी,
सदां नतीजा उल्टा होगा.
खो दोगे तुम एक दोस्त को
और व्यर्थ शर्माना होगा. 

कैलाश शर्मा 

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