गुरुवार, 20 सितंबर 2012

गधे का गाना (काव्य-कथा)

एक गधा और एक लोमड़ी 
उनमें बहुत दोस्ती गहरी.
रोज़ रात को दोनों थे जाते 
एक खेत में खाने ककड़ी.

चलता रहा बहुत दिन ऐसे 
रात्रि पूर्णिमा की फिर आयी.
पूर्ण चन्द्रमा चमक रहा था 
और सफ़ेद चांदनी थी छायी.

देख चाँद की मस्त चांदनी
बोला गधा मुझे है गाना.
तुम्हें लोमड़ी सुनना होगा 
मेरा सुन्दर मीठा गाना.

बहुत लोमड़ी ने समझाया 
गाने की गलती न करना.
खेत का मालिक आजायेगा 
हम को पड़ जाएगा पिटना.

बहुत मना किया लोमड़ी ने 
लेकिन गधे ने एक न मानी.
चलते हुए लोमड़ी बोली 
मैं बाहर करती हूँ निगरानी.

शुरू किया रेंकना जैसे ही,
डंडा लेकर मालिक आया.
करी धुनाई गधे की उसने,
नहीं वहां से भाग वो पाया.

चला गया खेत का मालिक 
उसे अधमरा वहाँ छोड़कर.
पहुंचा पास लोमड़ी के वह 
धीरे धीरे चलता लंगड़ाकर.

जब देखा लोमड़ी ने उसको
कहा न तुमने बात थी मानी.
अपनी मर्ज़ी का करने से 
तुमको मार पडी है खानी.

अगर मित्र की सही राय को
ज़िद के कारण नहीं मानता.
कष्ट उठाना पडता उसको
आखिर में पछताना पडता.

कैलाश शर्मा 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

नीला सियार (काव्य-कथा)

एक सियार भूल कर रस्ता
गलती से आ गया शहर में.
देख शहर की भीड़ भाड़ को
डर जागा था उसके मन में.

नज़र पडी जब कुत्तों की,  
उसके ऊपर लगे भोंकने.
डर कर के जब वह भागा,
उसके पीछे लगे दौडने. 

थका सियार भाग भाग कर,
कुत्ते पीछे सियार था आगे.
तभी दिखाई दिया उसे था 
बड़ा हौद एक घर के आगे.

कूदा सियार था उसी हौद में
कुत्ते उस तक पहुँच न पाये.
थोड़ी देर भौंक कर उस पर, 
लौट गये जिस रस्ते थे आये.

नीला रंग था भरा हौद में,
निकल सियार हौद से आया.
बाल धूप में सूख गये जब,
सारा शरीर था नीला पाया.

नीला अपना रंग देख कर
चालाक सियार बहुत हर्षाया.
चालाकी स्वभाव में उसके 
एक विचार था मन में आया. 

जंगल में सियार जब पहुंचा
सभी जानवर चोंक गये थे.
ऐसा जानवर कभी न देखा 
मन में यह सब सोच रहे थे.

जाकर वह सभी से बोला,
ईश्वर ने भेजा है मुझको.
मैं अब हूँ राजा जंगल का 
जैसा कहूँ है करना तुमको.

ईश्वर का आदेश समझ कर
सबने सियार को राजा माना.
बड़े मज़े कट रही ज़िंदगी 
मिलता भरपेट रोज था खाना.

देख चाँद एक दिन सियार थे,
हुआ हुआ सब लगे थे करने.
नीला सियार मन रोक न पाया 
हुआ हुआ वह लगा था करने.

चोंक गये तब सभी जानवर 
नीले सियार की पोल खुल गयी.
झपट पड़े सब उसके ऊपर 
पल भर में ही मृत्यु हो गयी.

धोखे का फल कुछ दिन मीठा,
जिस दिन सत्य सामने आता.
जो कुछ मिलता है धोखे से, 
नष्ट वो पल भर में हो जाता.

कैलाश शर्मा 
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