घनघोर घटायें जब आतीं,
धरती खुशियों से हर्षाती.
मन मयूर नाचने लगता,
जब बारिस की बूँदें आती.
बहता पानी जब गलियों में,
बच्चे आकर छप छप करते.
कागज़ की कश्ती जब बहती,
ख़्वाबों में कितने शहर गुज़रते.
पेड़ नहा कर के बारिस में,
हरे हरे पत्तों से सजते.
वर्षा रानी के स्वागत में,
नृत्य मयूर खुशी से करते.
बारिस धरती का जीवन है,
किसान आस से तकते हैं.
जब खेतों में बूँदें गिरतीं हैं,
खुशियों से नाचने लगते हैं.
बारिस में आओ सब भीगें,
मौसम का आनंद उठायें.
मम्मी से फिर कहेंगे जाकर,
गरम पकोड़े हमें खिलायें.
....कैलाश शर्मा