शनिवार, 28 मार्च 2015

आलसी ब्राह्मण (काव्य-कथा)

एक ब्राह्मण बहुत आलसी, एक गाँव में रहता था,
खेत जमीन बहुत थी उसके, लेकिन कुछ न करता था.

उसके आलस के कारण, पत्नी बहुत दुखी रहती थी,
मैं क्यों काम करूंगा कोई, कहता जब पत्नी कहती थी.

एक दिन घर में साधू आया, उसका था सत्कार किया,
हाथ पैर उसके धुलवा कर, उसको था जलपान दिया.

कुछ भी चाहो वत्स मांग लो, खुश होकर साधू था बोला,
मुझे आप एक सेवक दे दो, हाथ जोड़ वह ब्राह्मण बोला.

ऐसा ही होगा कहते ही, प्रगट हुआ वहां एक दानव,
बोला मुझे काम दो जल्दी, वरना तुम्हें खाऊंगा मानव.

उसको आज्ञा दी ब्राह्मण ने, खेतों में जा पानी देना,
कुछ पल में ही लौटा दानव, बोला और काम क्या देना.

चिंतित होकर लगा सोचने, दानव को क्या काम बताऊँ,
व्यस्त रखूँ मैं कैसे इसको, कैसे मैं अपनी जान बचाऊं.

ब्राह्मण डरते डरते बोला, खेत जोत कर अब तुम आना,
उसकी पत्नी उससे बोली, मुझ पर छोडो ये काम बताना.

अगर न आलस होता तुम में, अपना काम स्वयं ही करते,
कभी न ऐसा दिन था आना, जब तुम एक दानव से डरते.

कुछ ही देर में दानव आया, कहने लगा काम बतलाओ,  
ब्राह्मण पत्नी उससे बोली, जो मैं कहती अब कर आओ.

मोती कुत्ता है बाहर बैठा, उसकी सीधी पूंछ करो तुम,
पूरा जब हो काम तुम्हारा, तब ही आना पास मेरे तुम.

पति से जाकर के वह बोली, अब तुम बिना डरे सो जाओ,
आलस को है तुम तज करके, कल से स्वयं खेत में जाओ.

उठ कर सुबह खेत जाने को, ब्राह्मण घर से बाहर आया,
टेढ़ी पूंछ न हुई थी सीधी, कोशिश करते दानव को पाया.

ब्राह्मण ने दानव से पूछा, कितना काम अभी है बाकी,
हँस कर कहा और फिर उससे, और काम देना है बाकी.

आलस से जो दूर है रहता, सुख संतोष सदा वह पाता,
अपना काम स्वयं जो करता, नहीं किसी से है भय खाता.

...कैलाश शर्मा  
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